इंग्लैंड के वैज्ञानिकों ने कृत्रिम नाक और कान को 3D प्रिंटिंग के जरिए तैयार किया है। इस कृत्रिम नाक और कान को उन बच्चों और वयस्कों में लगाया जाएगा जिनके चेहरे पर जन्मजात कान या नाक नहीं थे। इन कृत्रिम अंगों को जिन मरीजों को लगाया जाएगा उनके ही शरीर के कोशिकाओं से तैयार किया जाएगा।

कृत्रिम नाक और कान

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3D प्रिंटिंग तकनिकी से हुआ है तैयार कृत्रिम नाक और कान

वेल्स की स्वानसी यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने इस कृत्रिम नाक और कान को तैयार किया है। वैज्ञानिकों ने बताया कि यह 3D प्रिंटिंग के मदद से कान और नाक के अलावा चेहरे के अन्य दूसरे अंगों को भी तैयार कर सकते हैं। वैज्ञानिकों ने बताया कि इस तकनीकी की मदद से चेहरे पर जलने, कैंसर और दूसरे ट्रामा के शिकार होने की वजह से मरीजों के चेहरे पर हुए नुकसान की भरपाई इससे की जाएगी।

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स्वानसी यूनिवर्सिटी ने ऐसे लोगों की मदद के लिए स्कार फ्री फाउंडेशन की शुरुआत कर दी है। इस कृत्रिम नाक और कान के क्लिनिकल ट्रायल्स में उन लोगों को शामिल किया जिनके चेहरे पर कोई न कोई अंग नहीं था। वर्तमान में ऐसे मरीजों को प्लास्टिक प्रोस्टेथेटिक का इस्तेमाल कर अंगों का उपयोग किया जाता था। लेकिन मरीज अपने शरीर का अंग इसको महसूस नहीं कर पाते थे। इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखते हुए स्कार फ्री फाउंडेशन ने उन्ही मरीजों के स्टेम सेल्स की मदद से कृत्रिम नाक और कान तैयार करना शुरू किया और मरीजों पर लगाना शुरू किया।

किसी भी तरह के कार्टिलेज का नहीं हुआ है इस्तेमाल 

वैज्ञानिकों ने बताया कि इस कृत्रिम अंग को तैयार करने के लिए मरीजों के शरीर से कोई भी कार्टिलेज नहीं निकाला जाता है। ऐसे में अब मरीजों को किसी भी दर्द वाली सर्जरी से नहीं गुजरना होगा। वैज्ञानिकों ने बताया कि मरीजों के चेहरे से कार्टिलेज निकाला जाता तो उनके शरीर पर सर्जरी का निशान आ जाता। इसलिए वैज्ञानिकों ने सोचा कि मरीजों के स्टेम सेल की मदद से इन अंगों को तैयार किया जाए ताकि किसी भी मरीज को सर्जरी से न गुजरना पड़े।

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स्टेम कोशिकाओं से तैयार किया बायो इंक

इस स्टेम कोशिकाओं और पौधों से मिलने जुलने वाले नैनोसेल्युलोज से बायो इंक को बनाया गया। इस बायो इंक की मदद से 3D प्रिंटर और एक सॉफ्टवेयर की सहायता ली गई। इसके बाद कृत्रिम अंग को तैयार किया गया। वैज्ञानिकों ने इस बात का दावा किया बायो इंक से बनाई गई कि कृत्रिम अंग बिल्कुल सुरक्षित है। यह नॉनटॉक्सिक है। वैज्ञानिकों ने यह भी बताया कि इसका इम्यून सिस्टम पर किसी भी प्रकार का कोई बुरा असर नहीं पाया गया है।

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