दिन दूनी राह चौगुनी विकास करना ये मुहावरा बिलकुल सटीक बैठता है विज्ञान और तकनीकी के लिए। देखते – देखते विज्ञान और तकनीकी इतना आगे निकल गए की किसी इंसान की आँख की रौशनी को 40 साल बाद वापस लौटा देती है। आज हम विज्ञान की दुनिया की एक ऐसी खबर की बात करने वाले है जो आने वाले समय के लिए बेहद उपयोगी हो सकता है।
फ्रांस में रहने वाले एक व्यक्ति जिसकी उम्र करीब 58 साल है। उसकी एक आँख की आंशिक रौशनी 40 साल बाद लौटी है। इस व्यक्ति की 40 साल पहले रेटिनाइटिस पिगमेंटोसा नामक एक बीमारी के चलते उसकी आँखों की रौशनी चली गयी थी। इस बीमारी की अगर बात करे तो इसमें आँखों की कोशिकाएं प्रकाश के प्रति सवंदेनशील होती जाती चली जाती है जिसके वजह से कुछ दिन बाद आखों को पूरी रौशनी चली जाती है जिसके बाद इंसान कुछ भी देखने में पूर्णरूप असमर्थ हो जाता है।
पिट्सबर्ग यूनिवर्सिटी के आई विशेषज्ञ डॉक्टर जोस एलेन साहेल और उनकी पूरी टीम पिछले 13 साल से इस बीमारी का इलाज खोज रहे थे। जब डॉक्टर साहेल से इसके बारे में पूछा गया तो उन्होंने बताया की हमने आखों की रौशनी वापस लाने के लिए ऑप्टोजेनेटिक्स तकनीक का उपयोग किया है। इस तकनीकी की मदद से दिमाग और आखों से जुड़े सभी क्रियाकलापों के बारे समझा जाता है। हम इस तकनीक के माध्यम से हमने उन कोशिकाओं पर एक खास तरह की प्रोटीन का इस्तेमाल जो कोशिकाएं प्रकाश पड़ने पर संवेदनशील हो जाती है। और जब हमने इस प्रोटीन का इस्तेमाल किया तो इसका परिणाम हमारे पक्ष में रहा हौर हम सफल हुए।
नेचर जर्नल में छपे एक रिसर्च पेपर के मुताबिक इस तरह का जेन थेरेपी का इस्तेमाल इंसानो पर पहली बार हो रहा है और इससे पहले इसको बंदरों पर प्रयोग किया गया था। इस जीन थेरेपी को इस्तेमाल करते समय मरीज को एक ख़ास तरह का चश्मा भी पहनाया जाता है। जब मरीज ने उस चश्मा को पहना तो बारीक़ चीजे उसको दिखाई देने लगी और सात महीने बाद उसको ज़ेब्रा क्रासिंग भी दिखने लगा।
डॉक्टर साहेल ने बताया की इसपर अभी बहुत अध्ययन करने की जरूरत है। इस तकनीकी को सार्वजनिक रूप से इलाज की विधि के तौर पर उपलब्ध होने में करीब 5 – 10 सालों का समय लगेगा। एक रिपोर्ट के मताबिक ब्रिटेन में चार हजार लोगो में से एक व्यत्कि रेटिनाइटिस पिगमेंटोसा नाम की बीमारी से पीड़ित है। डॉक्टर साहेल ने बताया की यह तकनीकी कितना कारगर है इसके लिए और अधिक रिसर्च करने की आवश्यकता है।
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