MELANOMA क्या है?

मेलानोमा (MELANOMA) एक प्रकार का स्किन कैंसर है जो सबसे ज्यादा खतरनाक माना जाता है। मेलानोमा (MELANOMA) के होने के पीछे की वजह आज तक पता नहीं चल पाई है। वैज्ञानिक मानते हैं कि मेलानोमा होने का मुख्य कारण सूरज की किरणें है। सूरज की किरणें इस मेलानोमा यानी स्किन कैंसर के लिए बड़ा रिस्क फैक्टर हो सकता है।

MELANOMA

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सबसे ज्यादा गोर में पाया जाता है MELANOMA

अमेरिकन कैंसर सोसायटी के मुताबिक अगर बात करें तो यह मेलानोमा यानि स्किन कैंसर सबसे ज्यादा मामले अश्वेत लोगों के मुकाबले श्वेत लोगों में अधिक पाया जाता है। इस मेलानोमा से लड़ने के लिए वैज्ञानिक कुछ एंटीबायोटिक्स पर रिसर्च कर रहे हैं। वैज्ञानिकों को कुछ एंटीबायोटिक्स इस स्किन कैंसर पर असरदार मिली है।

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इस पर रिसर्च करने वाले बेल्जियम के वैज्ञानिकों के मुताबिक यह एंटीबायोटिक्स कैंसर कोशिकाओं को टारगेट करती है और इनके बढ़ने की क्षमता को रोक देती है। वैज्ञानिकों ने बताया कि हम इस एंटीबायोटिक का उपयोग चूहे पर कर रहे हैं और इसका असर भी देखा जा रहा है। एक्सपेरिमेंटल मेडिसिन्स जर्नल में पब्लिश रिसर्च बताती है स्किन कैंसर से लड़ने में एक बेहद महत्वपूर्ण हथियार साबित हो सकता है।

एंटीबायोटिक्स कैंसर कोशिकाओं को रोकने के लिए कैसे काम करती है?

शोधकर्ता एलियोनोरा लियुकी के अनुसार जैसे-जैसे स्किन कैंसर बढ़ने लगता है उस समय कुछ कैंसर कोशिकाएं इलाज के दौरान खुद को दवाओं के असर से बचाने में कामयाब हो जाती हैं। जो कोशिकाएं इलाज के दौरान बच जाती हैं वही कोशिकाएं ट्यूमर बनाने की क्षमता बना लेती हैं। इस रिसर्च में यह पाया गया कि एंटीबायोटिक्स की मदद से ऐसी कोशिकाओं को कंट्रोल किया जा सकता है जो इलाज के दौरान बच जाती है। ऐसी एंटीबायोटिक्स को एंटी मेलानोमा एजेंट की तरह से उपयोग किया जा सकता है।

चूहे पर कैसे किया गया प्रयोग?

एंटीबायोटिक्स का असर देखने के लिए वैज्ञानिकों ने कैंसर कोशिकाओं का उपयोग किया। वैज्ञानिकों ने कैंसर से पीड़ित एक मरीज के शरीर से ट्यूमर निकालकर चूहे के शरीर में इम्प्लांट किया। चूहे में जब इम्प्लांट किया गया उसके बाद इस एंटीबायोटिक्स से उस पर शोध करना शुरू किया। शोधकर्ता लियुकी के मुताबिक इस एंटीबायोटिक्स ने कैंसर की कई सारी नई कोशिकाओं को तेजी से खत्म करने में कामयाब रहे रही।

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इस रिसर्च के दौरान यह भी देखा गया ऐसी दवाओं का असर देखा जो बैक्टीरिया पर बेअसर साबित हो चुकी है। कैंसर के इलाज के दौरान इस बात पर कोई असर नहीं पड़ा है। कैंसर कोशिकाएं इस दवा के लिए सेंसिटिव साबित हुई। इसीलिए इसका इस्तेमाल बैक्टीरियल संक्रमण के अलावा कैंसर के इलाज में भी किया जाने वाला है।

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