इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च फेफड़े से जुड़ी एक बीमारी के लिए नई टेस्ट किट विकसित की है। फेफड़े से जुड़ी बीमारी सिलिकोसिस का पता लगाने के लिए इस नए टेस्ट किट को तैयार किया गया है। इस नए टेस्ट किट की सहायता से बीमारी को गंभीर होने से पहले ही पता लगाया जा सकेगा। सिलिकोसिस बीमारी को समय से पहले पता लगाना बेहद जरूरी होता है क्योंकि एक बार अगर मरीज की हालत बिगड़ने लगी तो फिर उसको ठीक कर पाना बेहद मुश्किल और पेचीदा काम डॉक्टरों के लिए हो जाता है।

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सिलिकोसिस बीमारी कैसी होती है?

यह एक प्रकार की फेफड़े से संबंधित बीमारी है। बालू, मिट्टी और धूल के कणों में सिलिका नामक मिनरल मौजूद होता है। जो भी मजदूर या व्यक्ति बालू मिट्टी और धूल के माहौल में रहकर काम करते हैं उनके फेफड़ों में सांस के जरिए यह सिलिका फेफड़े में पहुंचने लगते हैं। धीरे-धीरे इनकी मात्रा बढ़ती है और उनके फेफड़े खराब हो जाते हैं।

सिलिकोसिस

 

सिलिकोसिस की वजह से साँस लेना भी हो जाता है मुश्किल

एक समय ऐसा आता है कि सिलिका फेफड़ों को इतना डैमेज कर देते हैं कि मरीजों को सांस लेना भी दूभर हो जाता है। इस स्टेज को सिलिकोसिस की सबसे गंभीर अवस्था मानी जाती है। अगर हम आसान भाषा में कहें तो ऐसे परिस्थिति में मरीजों के फेफड़े ठीक से काम करना ही बंद कर देते हैं।

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कई बिमारियों को जन्म देता है सिलिकोसिस

सिलिकोसिस दूसरी कई बीमारियों का भी खतरा पैदा करने लगती है। इसकी वजह से टीवी, लंग कैंसर और क्रॉनिक ब्रोंकाइटिस जैसी बीमारियां लगते हैं। जिस भी व्यक्ति को यह बीमारी होती है उसके अंदर इसके लक्षण को पता लगाना थोड़ा मुश्किल होता है क्योंकि इस बीमारी को पता लगाने के लिए कोई भी खास जांच मौजूद ही नहीं है। 

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लक्षण के आधार पर इस बीमारी का लगते है पता

मरीज अंदर कुछ लक्षण दिखाई देते हैं जैसे आराम करने या चलने फिरने पर सांस लेने में कैसा महसूस होता है डॉक्टर मरीजों से पूछते हैं। मरीजों से उनके नौकरी से जुड़ी जानकारियां भी डॉक्टर लेते हैं। मरीजों के अंदर कुछ खास तरह के बदलावों को भी पाया गया है। मरीजों से उनके पिछले रिकार्ड की भी जानकारी ली जाती है। फेफड़े से जुड़ी कुछ जांच कराने की सलाह डॉक्टर देते हैं जिससे फेफड़े की वास्तविक स्थिति का पता लग सके।

सिलिकोसिस का कोई भी इलाज नहीं है मौजूद

इस सिलिकोसिस बीमारी का कोई इलाज भी मौजूद नहीं है। एक बार अगर ये बीमारी हो जाती है तो मरीजों को पहले की तरह से स्वस्थ कदापि नहीं किया जा सकता, सिर्फ डॉक्टर इस बीमारी के बढ़ने की रफ्तार को धीमी कर सकते हैं। ऐसे मरीजों को धूम्रपान करने से मना किया जाता है। इस बीमारी के इलाज के तौर पर सिर्फ ब्रॉन्कोडायलेटर मौजूद है और सूजन को कम करने के लिए कोशिश की जाती है। कई बार मरीजों को ऑक्सीजन भी बाहर से देने पड़ जाते हैं।

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