भारत में जितनी तेजी से कोरोना की दूसरी लहर फैली है उतनी ही तेजी से अब ब्लैक फंगस के मामले फ़ैल रहे है। इस ब्लैक फंगस के होने का बहुत से दावा किया जा रहा ही जैसे की कोरोना मरीजों की अधिक मात्रा में स्टेरॉयड देना जिसमे अहम मन जा रहा है। ऐसे में बहुत से लोगो के मन में सवाल था की क्या ये ब्लैक फंगस नया है या पुराना है ? क्या ब्लैक फंगस बीमारी सिर्फ कोरोना वाले मरीज को ही होगी या सामान्य लोगो भी हो सकती है ? ऐसे बहुत से सवाल लोगो के मन में उठ रहे है आज उन सभी सवालों के जवाब हम देने की कोशिश करेंगे।
ब्लैक फंगस का इतिहास क्या है ?
ब्लैक फंगस का मामला सबसे पहले जर्मनी के पाल्टाफ़ नामक पैथोलोजिस्ट ने सन 1885 में पहली बार देखा था। फिर इसको अमेरिका के पैथोलॉजिस्ट आरडी बेकर ने ब्लैक फंगस का नाम “म्यूकोरमाइकोसिस ” रखा। 1943 में छपे एक शोध में लेख लिखा था जिसके हिसाब से इस बीमारी से बचने वाला पहला व्यक्ति हैरिस था जिसको 1955 में इस बीमारी से बचाया गया था। हलांकि अब तक इस बीमार के निदान के बारे में कोई ज्यादा बदलाव नहीं पाया गया है। इसका मतलब 1885 से लेकर 2021 तक इसके निदान पर कोई ज्यादा पुख्ता अध्ययन या बदलाव देखने को नहीं मिला है।
कुछ वैज्ञानिकों का कहना है की यह बीमारी कमजोर प्रतिरोधक क्षमता वाले लोगो में और मधुमेह से पीड़ित मरीजों में मुख्य रूप से मुख्यतः होता है और ऐसे में समय से इनका इलाज नहीं हुआ तो जान भी चली जाती है। यह बीमारी काम लोगो को होती है लेकिन घातक है। इसका संक्रमण आँख , नाक , दिमाग , फेफड़ों ,आंत , और शरीर के अन्य भागो को भी संक्रमित करता है।
अगर इसका इतिहास देखा जाये तो इस बीमारी के बारे में दुनिया को पहले से पता है लेकिन लोग इसको फिर भी नया क्यों मान रहे है ? इस प्रश्न का सीधा और सरल जवाब है की इतने ज्यादा व्यापक रूप से इस बीमारी का संक्रमण पहली बार फैला है। इससे पहले इस ब्लैक फंगस के मरीजों की तादात कभी भी इतनी नहीं रही जितनी इस कोरोना माहमारी के बाद फैली इसलिए इस बीमारी को नया माना जा रहा है। यह मुख्यतः कोरोना की दूसरी लहर में ही फैली है और इसको कोरोना के जोड़ कर भी देखा जा रहा है।
या तो इसको दूसरे भाषा में बोले की लोगो को कोरोना की वजह से भ्रम हो रहा है। हलाकि किसी भी जानकार या विशेषज्ञ ने इसको नया नहीं कहा है लेकिन इसको लोग नई बीमारी मान रहे है। शुरुआती दिनों में लक्षण की पहचान कर इलाज करवाने से मरीज जल्दी ठीक हो सकते है लेकिन इलाज में देरी होने से मरीज की जान का खतरा बन जाता है।
कुछ रिपोर्ट में पाया गया है की यह वातावरण में कहि भी मिल सकता है लेकिन आमतौर खराब खाना में व्यापक रूप से पाया जाता है। यह हमारी शरीर में अगर जाता है तो हमारी शरीर की प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होने पर इसको हमारे शरीर में मार देती है लेकिन अगर प्रतिरोधक क्षमता अगर कमजोर हुई तो ये हमें संक्रमित कर देगा। इसीलिए जिन लोगों को कोरोना हुआ है उनकी शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बेहद कमजोर हो जाती है और ऐसे में ब्लैक फंगस के संक्रमण का खतरा उनको ज्यादा हो जाता है।
यह बीमारी अगर हो जाये तो कैसे रखे खुद को सुरक्षित ?
इस बीमारी के इलाज में सबसे जरूरी है आपकी शरीर की प्रतिरोधक क्षमता मजबूत हो और इसके लिए तमाम उपाय है जो आप डॉक्टर की सलाह पर कर सकते है। शरीर में नमक का प्रयाप्त मात्रा में और संतुलित होना जरूरी है। शरीर में पानी की कमी नहीं होनी चाहिए। बहुत ज्यादा जरूरत होने पर एंटी फंगल थेरेपी का इस्तेमाल भी मरीज के ऊपर किया जा सकता है और इसके साथ ही मरीज के सेहत पर लगातार निगरानी रखनी जरूरी है।