चांदी की तरह से सफेद चमकने वाला ग्लेशियर लाल रंग में तब्दील
चांदी की तरह से सफेद चमकने वाला ग्लेशियर अगर अचानक से लाल धब्बे में तब्दील हो जाए तो हर कोई देख कर इसको हैरान हो जाएगा। ग्लेशियर जब सफेद रंग से लाल रंग में बदलने लगे तो इसको आप क्या कहेंगे ? क्या वहां खून की नदियां बहने लगी है या किसी तरह का जीवसंहार या नरसंहार हुआ है ? इस तरह की घटना को वैज्ञानिक रूप से ग्लेशियर का खून कहा जाता है। ग्लेशियर का इस तरह से लाल रंग में बदलना वैज्ञानिकों को हैरान कर रहा है। लेकिन सफेद बर्फ के लाल रंग में बदलने के पीछे एक बेहद ही रहस्यमई जीव का हाथ है जिसकी वजह से पूरा ग्लेशियर ही लाल हो गया है।
कहा पर ग्लेशियर लाल रंग में हुआ तब्दील ?
हम बात कर रहे हैं फ्रांस के ऐल्प्स पहाड़ों पर जमे ग्लेशियर की। इसमें 3280 से लेकर 9842 फीट की ऊंचाई तक जमे ग्लेशियर से निकलने वाले खून की जांच होने वाली है । ग्लेशियरों की जांच के लिए वैज्ञानिकों ने एल्पएल्गा प्रोजेक्ट की शुरुआत की है। जब ग्लेशियर की जांच की गई तो उनमें से खून निकलने की वजह बेहद हैरान करने वाली आई है। इस जांच में पाया गया है कि इसके लाल रंग का होने का कारण एक जीव है। यह जीव आमतौर पर नदियों, सागरों और झीलों में पाया जाता है। लेकिन अचानक पानी की गहराइयों में रहने वाले जीव ठंडे ग्लेशियर पर कैसे और क्यों कब्जा कर रहा है?
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ग्लेशियर लाल रंग में क्यों हुआ तब्दील ?
एल्पएल्गा प्रॉजेक्ट के कोर्डिनेटर एरिक मर्शाल ने बताया ग्लेशियर के लाल रंग में तब्दील होने के पीछे एक खास प्रकार की जीव है जिसका नाम माइक्रोएल्गी है। इस एल्गी की खासियत है कि पानी में रहने वाला यह एल्गी पहाड़ों के मौसम से क्रिया करता है तो लाल रंग छोड़ता है। इसी वजह से कई किलोमीटर तक ग्लेशियर लाल दिखने लगे हैं। यह माइक्रोएल्गी पर्यावरण परिवर्तन और प्रदूषण को प्रदर्शित नहीं कर पाती है और इसके वजह से उसके शरीर में रिएक्शन होने लगता है और वह लाल रंग बर्फ पर छोड़ने लगती है जिसके वजह से पूरा ग्लेशियर लाल रंग का दिखने लगा है।
एरिक मर्शाल कौन है ?
एरिक फ्रांस के ग्रेनोबल में स्थित लैबोरेट्री आफ सेल्यूलर एंड प्लांट फिजियोलॉजी के डायरेक्टर हैं। एरिक ने अपने बयान में बताया कि एल्गी सागरों नदियों और झीलों में पाई जाती है। यह बात बहुत कम लोगों को ही मालूम है कि यह माइक्रोएल्गी बर्फ और हवा के कणों के साथ उड़ कर ग्लेशियरों तक भी पहुंच जाती है। हमारी टीम फ्रेंच एल्प्स के ग्लेशियर पर पहुंची तो वहां पर पूरा ग्लेशियर ही लाल रंग से पटा हुआ दिखा।
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ग्लेशियर पर छोटे-छोटे कड़ों के बीच मौजूद पानी में यह माइक्रो लगी रही है और उस पर पर्यावरण परिवर्तन और प्रदूषण का असर पूरी तरह से दिख रहा है, जिसकी वजह से वह लाल रंग में तब्दील हो गई है। अमूमन माइक्रोएल्गी की कोशिकाएं 1 इंच का कुछ हजारवा हिस्सा होती हैं। लेकिन जब यह एक साथ जमा हो जाएं तो पूरे कॉलोनी को बना लेती हैं।
इस एल्गी कि क्या है खासियत ?
इस एल्गी में क्लोरोफिल के साथ एक और रसायन मौजूद होता है जिसकी कैरिटोनियड्स कहा जाता है। यह कैरोटिनॉयड्स लाल रंग या नारंगी रंग के पिगमेंट बनाने में सहायक होते हैं। कैरोटिनॉयड्स आमतौर पर एंटीऑक्सीडेंट होते हैं जो एल्गी को तेज रोशनी से बचाने में मदद करते हैं। कैरोटिनॉयड्स ऊंचाई पर होने वाले अल्ट्रावॉयलेट रेडिएशन से भी सुरक्षित रखने में मदद करते हैं।
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एल्गी फोटोसिंथेसिस के माध्यम से अपने लिए शुगर बनाते हैं और इस शुगर को अपनी पूरी पारिस्थितिकी तंत्र को चलाने के लिए उपयोग करते हैं। इन पहाड़ों पर मौजूद एल्गी ही लाल रंग से तब्दील करती है। यह एल्गी मुख्य रूप से हरी होती है और इनका फाइलम क्लोरोफाइटा है। एल्गी में कुछ खास तरह के क्लोरोफिल मौजूद होते हैं जो प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया को पूरी करने पूरी करने में मदद करते हैं।
एरिक ने बताया कि वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि ग्लेशियर का लाल रंग होने के पीछे का क्या कारण है। वैज्ञानिकों को इस एल्गी की बायोलॉजी के बारे में ज्यादा कुछ पता नहीं है और अब तक इस बात का भी पता नहीं चला है कि पहाड़ों के इकोसिस्टम पर एल्गी का पनपना कैसे संभव है ? वैज्ञानिकों को अब तक कुछ भी नहीं पता है कि क्लाइमेट चेंज होने की वजह से इस एल्गी पर क्या प्रभाव पड़ने वाला है।
वैज्ञानिकों का क्या है अनुमान ?
न्यूट्रिएंट्स से भरे हुए प्रदूषण में यह कैसे पनप रही है ? वैज्ञानिकों ने अनुमान लगाया है की पहाड़ों पर पोषण बारिश और हवा से पहुंचा होगा और वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा अधिक होने की वजह से इसको पनपने में मदद हुई होगी। एरिक मार्शल ने आगे बताया जब एल्गल ब्लूम होता है तब अधिक मात्रा में आसपास की बर्फ लाल रंग में बदलने लगती है इसका एकमात्र कारण कैरोटिनॉयड्स हो सकता है। इस लाल रंग गैलीसियर को देखने के बाद यह महसूस होता है कि यहां पर किसी प्रकार की कोई जंग हुई होगी ।
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एरिक ने आखिरी बार ग्लेशियर लाल रंग का कब देखा था ?
एरिक ने बताया कि उन्होंने आखरी बार इस तरह के ग्लेशियरों को पिछले साल 2019 के बसंत ऋतु में देखा था तब वहां कई किलोमीटर तक गैलिसर लाल रंग में दिखा रहा था। नेचर मैगजीन में छपी एक स्टडी के मुताबिक लाल रंग रोशनी परावर्तित करती है और इसकी वजह से ग्लेशियर तेजी से पिघलने लगता है। 2016 में छपी इस स्टडी के मुताबिक तेजी से ग्लेशियर पिघलने की वजह के पीछे इस एल्गी का मुख्य रोल है और यह ग्लेशियर के जीवन को छोटा करती है।
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वैज्ञानिकों को अब तक इसके पीछे का कारण स्पष्ट नहीं हो पाया है। इस रिपोर्ट के अनुसार इकोसिस्टम में रहने वाले जीवो के लिए भी खतरा हो सकता है। एरिक ने बताया कि अभी फिलहाल हम सिर्फ इतना ही कह सकते हैं कि यह घटना एल्गी पर्यावरण परिवर्तन की एक निशानी हो सकती है। ग्लेशियर के आसपास रहने वाले लोगों को हर साल यह खूनी ग्लेशियर दिखने मिलता है।
क्या कहती है DNA रिपोर्ट ?
7 जून को फ्रंटियर्स इन प्लांट साइंस जर्नल में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक फ्रेंच एल्प्स पर वैज्ञानिकों ने 4000 से 9645 फीट की ऊंचाई के बीच ग्लेशियरों पर अध्ययन किया और उन्होंने ऐसे माइक्रोएल्गी प्रजातियों को खोजा जो ग्लेशियर को लाल रंग में तब्दील करने के कारक हैं। इस रिपोर्ट को तैयार करने में एरिक और उनकी टीम के अन्य सदस्य की हिस्सेदारी है। इन सभी ने मृत एल्गी और टूटी हुई कोशिकाओं से डीएनडी को इकट्ठा किया है। इन लोगों ने पता किया तो जानकारी मिली कि ये एल्गी पहाड़ों पर कई सालों से मौजूद है या फिर मौसम में आते जाते रहते हैं।
एरिक ने कहा डीएनडी कि स्टडी के आधार पर पहाड़ पर यह एल्गी इन पहाड़ों पर कई सालों से पनप रही है। पहले मात्रा कम थी लेकिन अब इनका मात्रा और क्षेत्रफल दोनों बढ़ गया है। एरिक ने बताया कि 6560 फीट की ऊंचाई पर ग्लेशियर मिली थी जिसे सांगिना कहा जाता है। इसकी वजह से ऊंचाइयों पर ग्लेशियर लाल रंग के हो जाते हैं ।
अगली स्टडी कब होने वाली है ?
एरिक ने कहा कि अलग-अलग प्रजातियों का जमावड़ा होना ही बर्फ को लाल रंग में तब्दील करने का मुख्य कारक है। उदाहरण के तौर पर देखा जाए तो डेस्मोकॉकस, सिम्बायोक्लोरिस , 4920 फीट की ऊंचाई के ऊपर नहीं जाती। एरिक ने बताया कि हमारी टीम अगले महीने फिर स्टडी के लिए एल्प्स की पहाड़ियों पर जाने वाली है। हम दोबारा इस पूरी प्रक्रिया और सटीकता को समझने के लिए एक बार फिर हेल्प्स की पहाड़ियों पर जाने वाले हैं । यह लाल रंग की क्यों पैदा हो रही है इसकी विस्तृत स्टडी के लिए हमारी टीम कुछ दिन वहा खराब मौसम के बीच में बिताने वाली है।
इंसानों पर क्या होगा प्रभाव ?
एरिक ने बताया कि लोग अक्सर आर्कटिक या ध्रुवीय इलाकों में बर्फ पिघलने की बात करते रहते हैं क्योंकि उनके पिघलने से समुद्र के जलस्तर में बढ़ोतरी होती है लेकिन इन ग्लेशियरों की बात कम होती है। ये नदियों को पानी देते हैं अगर यह जल्द पिघलने लगे तो लोगों को पीने की पानी की दिक्कतें होने लगेगी। यह खतरनाक एल्गी से संक्रमित हो गए इंसानों के लिए भी खतरा है इसलिए ऐसे बदलावो को रोकने के लिए प्रयास करना जरूरी है।