देश और दुनिया में कई लाख लोग ऐसे हैं जो कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी से जूझ रहे हैं। इस कैंसर बीमारी का अब तक कोई भी प्रभावी इलाज नहीं खोजा गया है। लेकिन कैंसर को रोकने के लिए वैज्ञानिक अलग-अलग तकनीकी का इस्तेमाल करते हैं। इसी बीच ब्रिटिश के वैज्ञानिकों ने कैंसर के खतरे को घटाने के लिए गेहूं की एक नई किस्म विकसित की है। 

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Gene Editing तकनिकी से हटा दिया एमिनो एसिड

ब्रिटिश के वैज्ञानिकों ने Gene Editing तकनीकी का इस्तेमाल किया है। इन Gene Editing तकनीकी के इस्तेमाल से वैज्ञानिकों ने गेहूं की एक नई प्रजाति से एसपर्जिन नाम के अमीनो एसिड की मात्रा को घटा दिया है। Genetically Modified गेहूं को ब्रिस्टल  यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक तैयार कर रहे है।

कैंसर

अगले 5 साल तक चलेगा यह प्रोजेक्ट 

खबरों के मुताबिक यह प्रोजेक्ट अगले 5 साल तक जारी रहेगा। ऐसा पहली बार है जब जीन एडिटिंग यानी CRISPER तकनीकी से यूरोप में गेहूं की फसल उगाई जा रही है। आपको बता दें इससे पहले चीन और अमेरिका ऐसा कारनामा कर चुके है।

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कैंसर को कैसे रोकेगी गेहू की नयी प्रजाति ?

शोधकर्ताओं के मुताबिक जब किसी आम गेहू के इस्तेमाल से ब्रेड बनाने के बाद उसको बेक्ड या रोस्ट किया जाता है तो इसमें मौजूद एसपर्जिन जो कैंसर फैलाने वाले एक तत्व में बदल जाता है जिसको हम एक्रेलामाइड के नाम से जानते है। वह तत्व बदलने के बाद कैंसर की वजह बन सकता है इसलिए शोधकर्ताओं ने Gene Editing तकनीकी का इस्तेमाल कर के एसपर्जिन को गेहूं की नई प्रजाति से हटा दिया।

2002 में खोजा गया था एक्रेलामाइड

1990 से ब्रिस्टल यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता के अलग-अलग Genetically Modified फसल उगा रहे हैं। इससे पहले भी कई फसलों को ऊगा चुके हैं। यूनिवर्सिटी के मुताबिक एक्रेलामाइड की खोज 2002 में की गई थी। चूहें पर की गई शोध के बाद यह बात सच साबित हुई की कैंसर की वजह एक्रेलामाइड बनता है, इसीलिए इंसानों में भी इसको कैंसर का खतरा बताया गया है।

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अन्य गेहू की प्रजाति से इस गेहूं में एक्रेलामाइड की मात्रा 90 फीसदी कम

शोधकर्ताओं के मुताबिक गेहूं की फसल की क्वालिटी के स्तर पर किसी भी प्रकार का कोई बदलाव नहीं पाया गया है। शोधकर्ता प्रो. हाफोर्ड ने बताया कि इस नई प्रजाति की जांच करने के दौरान इसमें एक्रेलामाइड की मात्रा अन्य गेहूं की प्रजातियों से 90 फ़ीसदी तक कम पाई गई है। उन्होंने बताया कि इस नई प्रजाति के गेहूं की मदद से लोगों के अंदर धीरे-धीरे खानपान और पैकेज फूड से एक्रेलामाइड के खतरे को कम किया जाएगा, लेकिन इस पूरे प्रक्रिया में लंबा वक्त लगने वाला है।

2026 तक चलेगा यह प्रोजेक्ट 

शोधकर्ता डॉक्टर साराह रफान के मुताबिक इस पूरे प्रोजेक्ट को 2026 तक चलाया जाएगा। जेनेटिकली मॉडिफाइड पौधे की बुवाई जो लैब में तैयार की गई है इसको हर साल सितंबर और अक्टूबर में की जाएगी। जेनेटिकली मॉडिफाइड गेहूं में तैयार हुई है इस फसल से तैयार की गई गेहूं को ट्रायल में शामिल इंसान टेस्ट करेंगे जिसके बाद क्वालिटी और एसपर्जिन का लेबल चेक कर पाएंगे।

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