एक ऐसा कछुआ जो सौ साल पहले विलुप्त हो गया था उसका अचानक से मिलना वैज्ञानिकों के लिए हैरत की बात है। जिस कछुऐ की बात हम कर रहे है उसका नाम है शिलोनोयडिस फैंटास्टिकस (Chelonoidis phantasticus) है। बताया जा रहा है की यह कछुआ सौ साल पहले ही विलुप्त हो गया था। हाल में ही इस कछुऐ की प्रजाति के मादा कछुआ को बिलकुल सेहतमंद देखा गया है। यह मादा कछुआ को चलता – फिरता देख कर वैज्ञानिक खुश है।
इस मादा कछुआ को इक्वाडोर के गैलपैगोस आइलैंड पर इसकी वापसी हुई है। यह एक विशालकाय मादा कछुआ को दो साल पहले पाया गया था और तबसे इसकी जांच चल रही थी। जब इस कछुआ के बारे में पता चला तो वैज्ञानिकों दिमाग चकरा गया। जिस प्रजाति को वैज्ञानिक सौ साल पहले विलुप्त बताया उसकी एक मादा को सही सलामत और सेहतमंद पाया है।
यह भी पढ़े : अमेरिकी डिप्लोमैट्स और जासूसों में क्यों दिख रहा है हवाना सिंड्रोम ? जाने इस रहस्यमयी बीमारी की पूरी कहानी।
इस कछुआ पर हुए अध्ययन से पता चला की इसकी उम्र 100 साल से भी ज्यादा है। अभी इस कछुए को सांताक्रूज़ आइलैंड के एक ब्रीडिंग सेंटर में रखा गया है। गैलपैगोस नेशनल पार्क के जीव वैज्ञानिक अब इस कछुए की खोज करने की मिशन के तहत शुरुआत करने वाले है। वैज्ञानिकों का मानना है जिस आइलैंड पर यह पाया गया है वहां और भी इस प्रजाति के कछुए पाए जा सकते है इसलिए हम उनकी खोज करने की योजना बना रहे है।हो सकता है इसके सदस्य विलुप्त न हुए हो और ऐसा भी हो सकता है इसका जन्म किसी और मादा ने दिया हो तो वो भी वही होगी।
इन कछुओं कि खोज के लिए गैलपैगोस कंजर्वेंसी के लोग और येल यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक भी साथ रहेंगे। गैलपैगोस पार्क ने बताया की येल यूनिवर्सिटी के साइंटिस्ट ने इस कछुए के DNA को टेस्ट किया और फिर बताया की सौ साल पहले ही यह विलुप्त हो चुकी प्रजाति का कछुआ है। 1906 के इसी प्रजाति के एक कछुए के सुरक्षित रखे DNA से मिलान कर के बताया की यह प्रजाति सौ साल पहले विलुप्त हो चुकी है।
यह भी पढ़े : दुनिया के सबसे दुर्लभ खून कि कहानी, दुनियाभर में सिर्फ 43 लोगो के पास है यह खून।
आखिरी बार इस प्रजाति के कछुए को 1906 में देखा गया था और उसका DNA सैंपल रख लिया गया था। अब वैज्ञानिक इन दोनों के DNA का अध्ययन कर रहे है और पता करना चाहते है की ये दोनों कछुए एक ही परिवार के है या अलग – अलग।
आपको बता दे जिस गैलपैगोस द्वीप की बात कर रहे है ये वो वही जगह है जहां पर महान वैज्ञानिक चाल्स डार्विन ने अपनी इवोल्यूशन की थ्योरी दी थी। 19 वी सदी में इस द्वीप के बारे में जब डार्विन ने बताया तब वहां पर फ्लेमिंगों ,बूबिस , अल्बाट्रोस आदि प्रजातिया पाई जाती थी। आज इस गैलपैगोस आइलैंड से विभिन्न – विभिन्न प्रकार के जीव , पेड़ -पौधे , अभी भी मौजूद है लेकिन इनमे से बहुत सी प्रजातिया अब खत्म होने के कगार पर है। इस विशालकाय कछुए के मिला कर अलग -अलग प्रजातियों को मिलकर इस आइलैंड पर करीब 60 हजार से ज्यादा कछुए के होने की उम्मीद जताई गयी है।
यह भी पढ़े : खबर विज्ञान जगत से : ऑस्ट्रेलिया के जंगलो में 3000 साल बाद पैदा हुआ तस्मानिया शैतान।
एक दुखःद बात यह है की 2012 में लोनसम जॉर्ज नाम से मशहूर पिनाटा आइलैंड कछुआ जो अपनी प्रजाति का आखिरी नर था उसकी मृत्यु हो गयी और इसके साथ ही उसकी प्रजाति का भी अंत हो गया। वैज्ञानिकों का मानना है की गैलपैगोस पर ये कछुए बीस से तीस लाख पहले आये होंगे। ये सभी कछुए दक्षिण अमेरिका तट से एक हजार किलोमीटर की दुरी तय करके आये होंगे या फिर यह अनुमान है की किसी सब्जी से भरे जहाज के जरिये यहां तक आये होंगे।