अक्सर हॉस्पिटल्स में कुछ ऐसे सुपरबग्स पाए जाते हैं जिन पर कोई भी एंटीबायोटिक्स की दवाइयां काम नहीं करती। इन सुपरबग बैक्टीरिया से निजात पाने के लिए वैज्ञानिकों ने एक नया तरीका खोज (Engineered Bacteria) निकाला है। वैज्ञानिकों ने एक खास तरह के बैक्टीरिया को तैयार किया है जिससे इस सुपरबग से लड़ने में सफलता प्राप्त होगी। इस बैक्टीरिया का नाम इंजीनियर्ड बैक्टीरिया (Engineered Bacteria) दिया गया है।
स्टेफायलोकोकस ऑरेयस नाम के सुपरबक्स कैथेटर और ब्रीथिंग ट्यूब के जरिए मरीजों के अंदर जाते है
वैज्ञानिकों ने बताया कि स्टेफायलोकोकस ऑरेयस नाम के सुपरबक्स कैथेटर और ब्रीथिंग ट्यूब के जरिए मरीजों के अंदर पहुंच जाते हैं। इन सुपरबग्स के ऊपर कोई भी दवा काम नहीं करती है जिसके बाद मरीजों की हालत बिगड़ती चली जाती है। मरीजों की हालत नाजुक ना हो इसके लिए इंजीनियर्ड बैक्टीरिया (Engineered Bacteria) को बनाया गया है जो इसे रोकने में मदद करेगी।
Engineered Bacteria पर बार्सिलोना में हो रहा है शोध
इसपर रिसर्च बार्सिलोना का संस्थान सेंटर फॉर जिनोमिक रेग्युलर कर रहा है। शोधकर्ता लुइस सेरानो के मुताबिक इंजीनियर्ड बैक्टीरिया (Engineered Bacteria) खास तरह के प्रोटीन के जरिए सुपरबग्स को मार देगा। जब कोई मरीज बैक्टीरिया से होने वाले इन्फेक्शन के बाद जरूरत से ज्यादा एंटीबायोटिक की दवाई लेने लगता है तो उसके शरीर के अंदर एक खास प्रतिरोधक क्षमता बन जाती है। इस प्रतिरोधक क्षमता बनने के बाद ऐसा होने लगता है कि एक समय बाद इस पर कोई भी दवा काम नहीं करती। इसे हम विज्ञान की भाषा में एंटीमाइक्रोबॉयल रेजिस्टेंस (AMR) कहते हैं।
इंजीनियर्ड बैक्टीरिया का ह्यूमन ट्रायल जल्द होगा शुरू
अगर दवा के डोज का असर ना हो तो डॉक्टर से मिले। दवा का असर न होना यह बताता है कि बैक्टीरिया ने दवा के खिलाफ अपनी प्रतिरोधक क्षमता को विकसित कर लिया है। सुपरबग्स को खत्म करने के लिए जिस इंजीनियर्ड बैक्टीरिया (Engineered Bacteria) को तैयार किया गया है उसका प्रयोग पहले चूहे पर किया गया। इंजीनियर्ड बैक्टीरिया ने चूहे में लगी कैथेटर और मौजूद स्टेफायलोकोकस ऑरेयस को खत्म किया। शोधकर्ताओं ने बताया की 2023 में ह्यूमन ट्रायल शुरू कर दिया जाएगा। इस ट्रायल के दौरान फेफड़ों से पीड़ित मरीजों को शामिल किया जाएगा।
Engineered Bacteria सुपरबग्स को कैसे करेगा खत्म ?
रिसर्च के अनुसार सुपरबग अपने आसपास ऐसे बायोफिल्म्स बना लेती है जिसकी वजह से एंटीबायोटिक्स उसे तोड़ नहीं पाती और कोई भी दवाई असर नहीं करता। इंजीनियर्ड बैक्टीरिया की खास बात यह है कि एक एंजाइम की मदद से इस बायोफिल्म्स को तोड़ देगी। कुछ एक्सपर्ट्स बताते हैं कि अगर एंटीबायोटिक ने काम करना बंद कर दिया तो संक्रमित मरीजों के मौत का आंकड़ा बढ़ने लगेगा। खासतौर पर जब हिप रिप्लेसमेंट और c-section कराने वाले मरीजों की बात करे तो इनमे इसका खतरा मौत का बढ़ जाता है।
हर साल तक़रीबन 7 लाख लोगों की मौत एंटीमाइक्रोबॉयल रेजिस्टेंस की वजह से होती है
विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट बताती है कि तक़रीबन दुनिया भर में एंटीमाइक्रोबॉयल रेजिस्टेंस की वजह से हर साल 700000 लोगों की मौत हो जाती है। इसमें एंटीबायोटिक दवाओं के गलत इस्तेमाल के कारण वैज्ञानिक और डॉक्टर इसलिए चिंतित हो जाते हैं क्योंकि पिछले 3 दशकों से नई एंटीबायोटिक दवाएं खोजी ही नहीं गई हैं। धीरे-धीरे घर बैक्टीरिया पर इन दवाओं का असर कम होने लगा है। अगर यही हाल रहा तो छोटी-छोटी बीमारियां भी आने वाले समय में इंसानों के लिए जानलेवा बन जाएंगी।
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