देश में तरफ हर दिन ढाई लाख से ज्यादा मामले कोरोना के आ रहे है। हर दिन चार हजार से ज्यादा लोगो की जान जा रही है ऐसे में अब देश के सामने सबसे बड़ी संकट के रूप में ब्लैक फंगस ने भी दस्तक दे दी है। हर दिन हजार से ज्यादा मामले आ रहे है। ऐसे में इस ब्लैक फंगस के इलाज में इस्तेमाल होने दवाई की कालाबजारी शुरू हो गयी है।

अपना देश कोरोना के जंग के साथ – साथ इंसानियत की जंग भी लड़ रहा है। कोरोना से जितने लोगो की मृत्यु हो रही है उसमे इंसानियत का भी बड़ा हाथ है। लोग अपनी इंसानियत भूल गए है और जरुरी दवाइयों की कालाबजारी करने लगे है जिससे आम लोगो को दवाई समय से नहीं मिल रही है और उनकी मृत्यु हो जाती है।

ऐसे में एक सवाल आता है की यह ब्लैक फंगस के मामले अचानक से बढ़ क्यों गए है देश में ? जब इस सवाल के जवाब हमने खोजे तो हमें मिला जो विशेज्ञों ने बताया उसके हिसाब से की जब कोरोना की मरीज को लम्बे वक़्त तक स्टेरॉयड दिया जाता है तब उस मरीज के शरीर में प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है ऐसे में वह इस फंगस का शिकार हो जाता है।

अब कुछ दिन से नयी थ्योरी आ रही है की भारत के अलावा भी बहुत से ऐसे देश है जो अपने मरीजों को लम्बे समय तक स्टेरॉयड देते रहे है लेकिन उन देशों के मरीजों में इस तरह का ब्लैक फंगस का कोई संक्रमण नहीं दिखा फिर भारत के मरीजों में ऐसा क्यों ? ये सवाल वाजिब है। आइये इस सवाल के उत्तर पर चलते है।

फ़ूड एंड ड्रग फाउंडेशन और उनके एक्सपर्ट ने यह सवाल उठाया है और संदेह जताया है की कही इस ब्लैक फंगस के पीछे प्रदूषित ऑक्सीजन तो नहीं है ? और डिस्टिल्ड वाटर की जगह पर कही ऐसा तो नहीं नल का पानी का इस्तेमाल हुआ हो ? क्योकि अगर ऐसी गलती हुई है तो ये ब्लैक फंगस के संक्रमण की वजह हो सकता है। ऑल इंडिया फ़ूड एंड ड्रग लाइसेंस होल्डर फाउंडेशन ने भी सवाल उठाते हुए कहा की इस ब्लैक फंगस के संक्रमण का अचानक से बढ़ने के पीछे का कारण दूषित ऑक्सीजन मरीजों को देना या इसमें इस्तेमाल होने वाले डिस्टिल्ड वाटर का हो सकता है।

फ़ूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने पात्र में संदेह जताते हुए लिखा कि जब देश में ऑक्सीजन कि कमी थी तब इंडस्ट्री में इस्तेमाल होने ऑक्सीजन बनाने वाले भी मेडिकल कि ऑक्सीजन बना रहे थे तो कही ऐसा तो नहीं उन्होंने ऑक्सीजन पूरीफिकेशन को नजर अंदाज कर दिया और मानक के विपरीत ऑक्सीजन कि सप्लाई कर दी। यानी कि ये लोग प्रदूषित ऑक्सीजन कि सप्लाई तो नहीं कर रहे थे ?और उसकी पड़ताल हुई थी या नहीं ? घरों में दिए जाने वाले ऑक्सीजन भी क्या डिस्टिलेड वाटर के साथ दिए जाते थे या नल के पानी के साथ ? इस पर किसी ने ध्यान दिया क्या ?

जैन मल्टीस्पेशलिस्ट हॉस्पिटल के डायरेक्टर और बड़े गैस्ट्रोलॉजिस्ट डॉक्टर रॉय पाटंकर ने बताया कि पश्चिमी देशों में भी कोरोना का संक्रमण था जबकि वहां ब्लैक फंगस के मरीज नहीं मिले ,लेकिन हमारे यहां ब्लैक फंगस होने के बहुत से वजह हो सकते है। उन्होंने कहा देश में ऑक्सीजन कि किल्लत थी तब लोगो ने इंडस्ट्रियल ऑक्सीजन का भी इस्तेमाल मरीजों पर किया , हो सकता है वह ऑक्सीजन शुद्ध नहीं रहा हो या हम अपने देश में मरीजों को ह्यूमिडिफाइड ऑक्सीजन देते है जिसमे एक बोतल में हम डिस्टिल्ड पानी का इस्तेमाल करते है परन्तु उसकी जगह नल की पानी का इस्तेमाल हुआ हो ? या ऐसा भी हो सकता है जो बोतल हम ऑक्सीजन को ह्यूमिडिफाई करने के लिए उपयोग करते थे वो ठीक तरह से स्टेराइल नहीं हुआ हो।

एक और डॉक्टर प्रशांत ने बताया कि जिस स्ट्रेन कि पुष्टि महाराष्ट्र में हुई थी वो भी एक वजह हो सकता है इस ब्लैक फंगस का, लेकिन ऑक्सीजन और डिस्टिल्ड वाटर भी एक बड़ा कारक है। कुछ विषेशज्ञों ने बताया था यह फंगस सबसे तेजी से अगर फैलता है तो वो है ह्यूमिडिटी वाली जगह। कुछ ने बताया कि गन्दा भोजन का सेवन करने से इसका खतरा बढ़ जाता है। लेकिन अभी कुछ भी वैज्ञानिक तथ्यों के आधार इसकी मोहर नहीं लगी कि है आखिर कौन सी मुख्य वजह है इस ब्लैक फंगस की।

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